Monday, August 17, 2009

युवा मन

कई बार
मैंने पाया
मन
काफी पहले बूढ़ा हो गया
छुटपन में
पीठ पर लाद दिये गये
शब्दों के बोझ
अब तक नहीं उतार पाया।
बेजान पत्थर बन चुके शब्द
भार स्वरूप
कब तक ढोऊं
उन्हें अकेले
साथ बंटाने
नहीं कोई हाथ
लंबी डगर- अकेला सफर, औ
सिर पर अगिया वैताल
से नाचते शब्द
सुख
पता नहीं मारीचिका क्यों बना ?
बच्चे की आंख नहीं देख पाती है
अब सपने
क्रिकेट की गेंद
भले खींचती
अपनी ओर
पर
इम्तहान में नंबरों के भूत
मां- पिता की झिड़कियां
बच्चे
कब बूढ़ों में हुए तब्दील
नहीं मालूम
सच है
ओ युवा मन
बदलो
तुम समय- परिभाषा- अर्थ
वरना
दिखेंगे
अब सिर्फ
बौने- झुके
हम-तुम।
-०-
कमलेश पांडेय

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