Saturday, September 18, 2010

कुछ कुंडलियां

धन्य, तुम अखबारी लाल, क्या है तुमने खाया ?
तन हुआ गुलाब-गुलाब, दमके तेरी काया।
दमके तेरी काया, इसके पीछे है कैसी माया?
बतलाओ अखबारीलाल, राज है तुमने क्या पाया?
कहे कमल कविराय, राज वे न बतायें, भले हो सगा जाया
चुपके से झोली भर लावें, जान न पाये अपना ही साया।

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बिटिया के बाप का फट रहा है करेज
जबसे बिटिया सयानी हुई, जुटाने में दहेज
जुटाने में दहेज दुई कम, मरी बिटिया सेज
पढ़े लिखों को आज बिकने से नहीं परहेज.
कहें कमल कविराय, बटोरे दामाद आज सब कुछ सहेज
बिस्तर, गद्दा, सोफा से बात खत्म हो ना, मांगे कुर्सी-मेज।
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फूल गये हैं, वे जबसे, मंझ गये अखबारी लाल
आज मलीदा उड़ा रहे, कल तक थे जो फटेहाल
थे जो फटेहाल, आज हो गये हैं वे मालामाल
सूखे पिचके थे जो कल तक, लाल हो उठे हैं वे गाल
कहे कमल कविराय, अब बदल गया है उनका काल
पूंजीपतियों के संग जबसे बैठ गया है उनका ताल।
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टटपूंजियों को लग गया राजनीति का रोग
मिलकर उड़ाये सब सियार, आज सिंह का भोग
सिंह का भोग, शिकार आज पड़ा है जूठा
गद्दी पर बैठा रंगा सियार, सबसे बड़ा है झूठा
कहें कमल कविराय, समय का देख संयोग
गदहे सब तर रहे, हंस मनाए रोष
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राजनीति में अजब देखा, उलट-पुलट का खेल
कभी तो मिलती है गद्दी, कभी मिलती जेल
मिलती जेल, जिन्हें, जब वे पा जाते हैं बेल
खड़े हो जाते हैं, बेहया सम, मान अपमान परे ठेल
कहें कमल कविराय, जिसमें सब दुर्गुणों का मेल
मिलती है उसको ही कुर्सी, जो पाये यह सब झेल।
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चुप्पी साधे बैठे रहे, पढ़े लिखे होशियार
भ्रष्टाचारी सब करें, आजादी से बलात्कार
आजादी से करें बलात्कार, जिसकी जितनी मर्जी
पड़ी पड़ी सड़ती रहे, फरियादी की अर्जी
कहे कमल कविराय, पढ़े लिखों का है धंधा
दुम दबाए चुप रहें, जैसे लगा हो टामी को फंदा।
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चुनाव तो है प्रहसन, बस परदे की ओट
आज देने जाते हैं, बस बेवकूफ ही वोट
बेवकूफ ही वोट के दिन खाते दिल पर चोट
जीतने वाले तो जीता करते, कर सिर्फ लूट-खसोट
कहे कमल कविराय, अपने लोकतंत्र में है यह खोट
बिकने वाले तो सब बिक गये, पा थैली-थैली नोट।
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राजनीति में चमचों का है बहुत बड़ा स्थान
चमचे ही तो करवाते, बड़े नेता की पहचान
नेता की पहचान को तब खतरे में जान
जब मुंह मोड़ ले चमचे, बन बैठे अनजान
कहे कमल कविराय, चमचे बड़े गुणों की खान
चमकाए उस नेता को, जो रखे, सिर्फ चमचों का ध्यान।