Wednesday, August 24, 2011

किस रावण की भुजा उखाड़ूं / किस लंका में आग लगाऊं

देश में आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ मानो आंधी सी आ गयी है। पूरा देश गांधी टोपी पहन, मोमबत्ती जुलूस निकालकर देश को एक नये आलोक से जगमगा देना चाहता है। देश के विभिन्न भागों में रैलियां निकाली जा रही हैं। हमारे महानगर में भी युवकों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रैलियां निकालीं, नारे लगाये- 'अण्णा तुम अनशन करो, हम तुम्हारे साथ हैं।Ó दरअसल देश के वे युवा, जिन्होंने सन् छिहत्तर की संपूर्ण क्रांति तथा उसका हश्र नहीं देखा, इन मशाल जुलूसों में आगे-आगे शामिल हुए। उनकी आंखों में फिलवक्त एक स्वप्न टंगा है, जन लोकपाल लागू होते ही उनकी सारी दुश्वारियां समाप्त हो जायेंगी। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और न्यायाधीश तक को इस जन लोकपाल के अधीन ला देने के कारण देश एक बार फिर सोने की चिडिय़ा बन जायेगा। कारण कि देश के तमाम भ्रष्टाचारियों पर जन लोकपाल के सदस्य निगरानी रखेंगे।
बहरहाल, लोकतंत्र में विभिन्न मुद्दों पर आंदोलन छेड़े जाने चाहिए, क्योंकि यह वक्त की जरूरत है। वाकई आज देश में भ्रष्टाचार अपने चरम स्वरूप में पसर चुका है। हर रिश्ते-नाते, समाज, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन सेवा, जिस किसी मसले को आप उठा लें, भ्रष्टाचारियों की जमात आपके इर्द गिर्द बिखरी मिलेगी। पानी मिला दूध भी सही मात्रा में घर में नहीं बंट पाने के कारण हमारे बंटते परिवारों से लेकर बाजार में रंग मिली सब्जियों को बेचने वालों, नकली दवाओं के साथ जाली नोटों को चलाने वालों को आप सबों ने लगता है कहीं नहीं देखा है। दरअसल, हम इसे भ्रष्टाचार नहीं मानते हैं। हमारे कुछ विद्वत्जन यह भ्रम फैलाना चाहते हैं कि जन लोकपाल के हाथों जादुई छड़ी होगी, कारण भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से नीचे बहती है। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री, न्यायाधीश तथा अफसरशाही के भ्रष्टाचार पर रोक लग जाने से वाकई देश में..राम-राज...जायेगा। खैर, इस आंदोलन में एक बात बढिय़ा है कि आंदोलनकारी 'गांधीगीरी.में विश्वास रख रहे हैं। सिर्फ गांधी टोपियां इन दिनों ब्लैक में मिलने लगी हैं (पहले आठ, अब बीस रुपये) और पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी की जेब कथित ईमानदार आंदोलनकारी काटने पहुंच जा रहे हैं। यह तो बढिय़ा बात है कि मुन्ना भाई ने पहले ही देश के नौजवानों को गांधीगीरी की सीख दे दे थी। अन्यथा कहीं हमारे देश का हाल भी लीबिया में चल रहे आंदोलन जैसा हो जाता।
अब अण्णा जी का आंदोलन पूरे शबाब पर है तथा लगता है कि जन लोकपाल के मसले पर कुछ न कुछ ठोस नतीजा निकल जायेगा। देश की जनता के हाथों में वह कमान होगा, जिससे कि उसकी सारी समस्याओं का समाधान मिल सकेगा। सब्जियां सस्ती हो जायेंगी। बाप अपने बेटों के लिए दहेज नहीं लेंगे। बहुएं दहेज के लिए जलाई नहीं जायेंगी। बच्चों के स्कूलों में ऐडमिशन के लिए प्रिंसिपल डोनेशन मांगना छोड़ देंगे। सरकारी अस्पतालों में दवाएं मिलने लगेंगी। नर्सिंगहोम मरीजों को लूटना बंद कर देंगे। टीटीई ट्रेनों में बिना रिश्वत लिए आपको आरक्षण दे देंगे। ट्रेनें पलटना बंद कर देंगी। पुलिस बिना मुट्ठी गर्म हुए आपकी शिकायत लिख लेगी। न्यायालयों में न्यायाधीशों के सामने बैठे पेशकार उनके सामने ली जाने वाली पेशी (नकदी) की उगाही बंद कर देंगे। भ्रष्टाचार आज समाज में एकदम निचले तबके से लेकर ऊपर तक व्याप्त है। कई बार लगने लगता है- 'किस रावण की भुजा उखाड़ूं/ किस लंका में आग लगाऊं / गली गली, हर घर-घर रावण/ इतने राम कहां से लाऊं।Ó
अब आप देखिये न, किसी भ्रष्ट समाज में किसी बेचारे पुरुष तक को कितना भुगतना पड़ता है। पति बेचारा अगर औरत पर हाथ उठाता है तो वह जालिम, जो पिट जाता है तो बुजदिल। पत्नी को दफ्तर के किस्से नहीं बतलाये तो घुन्ना और बोले तो बेगैरत। घर से बाहर रहे तो आवारा, घर में पड़ा रहे तो नकारा। बच्चों को डांटे-पीटे तो जालिम और नहीं डांटे-पीटे तो लापरवाह। नौकरी नहीं करने दे तो- शक्की और करने दे तो औरत की कमाई खाने वाला।
क्या आप इस मसले को दांपत्य जीवन में छिपा भ्रष्टाचार नहीं मानते हैं। यह तो हम नासमझ थे और अब सन् छिहत्तर के बाद किसी ऐसे आंदोलन को अण्णा की कृपा से देख पा रहे हैं।
जोश मलीहाबादी के स्वर में कहें- 'अब तक खबर न थी मुझे उजड़े हुए घर की/ तुम आये तो घर बेसरो-सामां नजर आया।Ó
देश एक बार फिर उम्मीदों से भर उठा है। कृपया इसका गलत अर्थ नहीं लगायेंगे। हमारी किस्मत ही बहादुर शाह जफर की भांति है- 'उम्र ए दराज मांगकर लाये थे चार दिन / दो आरजू में कट गये, दो इन्तजार में।Ó
अब ऐसी स्थिति में जब सभी हताश बैठे थे तभी साहिर लुधियानवी के शब्दों में मानो समय ने स्वयं हमें दिलासा दिया है - 'तुम अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो/ मुझे अपनी कसम, यह दु:ख, यह हैरानी मुझे दे दो/ मैं देखूं तो सही, यह दुनिया तुझे कैसे सताती है / कोई दिन के लिये तुम अपनी निगहबानी मुझे दे दो।Ó अब देखा, जाये, उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी है।

Saturday, August 20, 2011

क्या अन्ना हजारे व देश के युवा ध्यान देंगे......


अन्ना हजारे के जन लोकपाल के मुद्दे पर किये जा रहे अनशन के साथ देश का युवा वर्ग मानो इस कदर उत्साहित होकर एक वायवीय समर में कूद पड़ा है,जैसे देश में जन लोकपाल कानून के लागू हो जाने से समग्र क्रांति आ जायेगी। देश के चंद भ्रष्ट मंत्रियों तथा अधिकतम प्रधानमंत्री तथा उनकी मांग के अनुसार चंद भ्रष्ट न्यायाधीशों तक को जन लोकपाल के जांच के दायरे
में लाकर देश से तमाम समस्याओं को जादू की छड़ी से समाप्त किया जा सकता है। अन्ना हजारे देश की 110 करोड़ की आबादी में से आज एक ऐसा व्यक्तित्व उभर कर सामने आये हैं, जिनके पीछे एक बार देश का युवा चलने की सोच रहा है। हालांकि स्वयं अन्ना की दृष्टि क्या इस भ्रष्टाचार रूपी दानव के विराट स्वरूप को पहचान पाने में सक्षम है। कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लगता है।
आज बेहिसाब बढ़ती आबादी में जब एक बालक जन्म लेता है, तब सरकारी अस्पताल से लेकर नर्सिंगहोम तक में किस प्रकार उस दंपति का आर्थिक शोषण होता है,संभवतः इस शोषण के स्वरूप से अन्ना बेखबर हैं। किसी बालक ने जन्म लिया तब तो गनीमत है किंतु लड़की का जन्म लेना तो मानो गोबर पट्टी तथा देश के पुरुष प्रभुत्व वाले राज्यों में एक पाप सा ही है। दहेज के दावानल में झुलसने वाली विवाहिताओं की चीख-पुकार क्या आजतक अन्ना के कानों में नहीं पड़ी है। पुरुषों के वर्चस्व में पिसती महिला तथा उनके दैहिक, मानसिक, आर्थिक शोषण की बात तो काफी दूर की है,आज कन्या भ्रूण हत्या के कारण देश के विभिन्न राज्यों में लिंगानुपात काफी गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। बालक-बालिका के थोड़ा बड़ा होते ही उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए अभिभावकों को कितनी तकलीफें उठानी पड़ रही हैं। देश में तमाम कानून बने हैं। आज शिक्षा का अधिकार कानून भी है,बावजूद बालश्रम पर रोक लगा पाने में कानून नाकाम रहा है।
मैं सरकारों की बात नहीं कर रहा हूं, कारण कि अन्ना तथा उनके सहयोगियों की नजरों में सरकारों में तो चेहरे पर कालिख पुते लोग शामिल हैं, जबकि दूध से धुले चेहरे वाले सफेद झक वस्त्रों वाले ही आज क्रांति की मशाल थामे मैदान में उतर पड़े हैं।
खैर, मुद्दे पर लौटता हूं, बच्चों और बच्चियों की शिक्षा सरकारी स्कूलों में उचित तरीके से नहीं हो पाने की आशंका में अभिभावक अपने बच्चों को निजी स्कूल तथा कालेजों में पढ़ाने को लालायित होते हैं, अथवा यूं कहें कि आज की सामाजिक व्यवस्था ही ऐसी हो गयी है कि कान्वेंट स्कूल में बिना अंग्रेजी पढ़े,तो कोई शिक्षित हो ही नहीं सकता। अब ऐसी स्थिति
में निजी स्कूल वाले डोनेशन के नाम पर आज लाखों रुपये तक वसूल रहे हैं,क्या अन्ना तक ऐसी खबरें आज तक कभी नहीं पहुंची हैं। वाकई अन्ना बहुत महान हैं। उन्हें ऐसी छोटी-छोटी चिंताएं नहीं सताती हैं। वे तो भ्रष्टाचार के चरम शीर्ष पर हमला कर उसे जड़ से मिटा कर ही छोड़ेंगे। आज सूचना का अधिकार पाने में कामयाब होने से उत्साहित चंद लोग उनका साथ दे रहे हैं। क्या उन्हें यह सूचना नहीं कि देश में सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही भ्रष्टाचार व्याप्त नहीं है। उन्हें अगर यह सूचना
नहीं तो मैं बताना चाहूंगा कि चिकित्सा, शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के हल्के से स्वरूप से ही आप यहां परिचित हुए हैं। उनके विराट स्वरूप का दर्शन करा पाना यहां मुमकिन नहीं है, कारण कि समाज की परतें जब आप उधेड़ने लगेंगे तो हमाम में सभी नंगे दिखेंगे। जिसकी पूंछ आप उठायेंगे, वह मादा ही निकलेगा।
हो सकता है कि किराये में बंगला लेकर वर्षों उसमें दखल बनाये रखने के बाद कानूनी तौर पर मकान मालिक को सालों उलझाकर उस बंगले का मालिक बनने वाले लोग भी आपके साथ क्रांति का झंडा उठा लें। क्योंकि दूसरों पर उंगलियां उठाना काफी आसान होता है। हां, हम सब भ्रष्ट हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार हमारे रग-रग में समाया हुआ है। आप नैतिकता का झंडा बुलंद कर रहें, बिना खाये-पीये। लेकिन जब आप भोजन ग्रहण करते थे, तब क्या गारंटी थी कि आपको शुद्ध खाद्यान्न ही मिल रहा था। मिलावट, जमाखोरी, महंगाई का नाम तो आपने सुना ही नहीं, न ही कभी उसके खिलाफ आवाज उठाई है।
आवाज तो पिछले दिनों बाबा रामदेव ने भी विदेश में जमा पैसों को लेकर काफी उठाई थी, जबकि स्वयं वे विदेशों में द्वीप के मालिक बनने में जरा भी पहरेज नहीं करते हैं। मामूली से योग प्रशिक्षण से शुरू कर लाखों करोड़ रुपये की संपत्ति खड़ा करने में उन्हें कोई गुरेज नहीं। उनके गुरुदेव जमीन दान करने के बाद कहां लापता हो गये, इस बारे में भी उन्हें खबर नहीं।
दरअसल हमारे देशवासियों की यह खासियत है कि वे विश्लेषण की जहमत नहीं उठाना चाहते हैं। सात बार लोकसभा में लोकपाल का मुद्दा रखे जाने और पारित नहीं कराये जाने के कारण अन्ना को बेहद नाराजगी है। अपने अनशन से वे सरकार को झुका देना चाहते हैं। भ्रष्टाचार वाकई बेहद बुरी, दानवी समस्या है। इसका खात्मा जरूरी है।

लेकिन किस प्रकार..। आज शिक्षक क्लासों में किस प्रकार पढ़ाते है और ट्यूशन के दौरान किस प्रकार,डॉक्टर सरकारी अस्पतालों में किस प्रकार और निजी डिस्पेंसरियों में किस प्रकार देखते हैं,क्या बताने की जरूरत है। डॉक्टर आज मानव अंगों तक को निकाल ले रहे हैं। दवा कंपनियां बेतहाशा लूट रही हैं। नियम-कानून की आंखों में धूल झोंकने वाले आज देशभर में आपका साथ दे रहे हैं। देश के कानून की किस प्रकार अदालतों में धज्जियां उड़ाई जाती हैं, क्या आपको यह नहीं दिखता। स्पष्ट है कि किसी भी मुकदमे के दौरान एक पक्ष सही होता है, दूसरा गलत, ऐसी स्थिति में गलत पक्ष का साथ देने वाले अधिवक्ता वर्ग के लिए आपके पास कोई शब्द है, क्या। आज देश में लाखों-लाख मामले बीसियों सालों से झूल रहे हैं।
आज देश में आम-खास नौकरियों में बहाली से लेकर ताबूत से लेकर तोप की खरीददारी में रिश्वतखोरी का आरोप लगता रहता है। तमाम जांच आयोग बनाये जाते हैं और वे सालों-साल जांच कार्य में उलझे रहते हैं।
क्या आप इन समस्याओं से वाकिफ हैं,भ्रष्टाचार की बात उठाने तथा इसके लिए संघर्ष करने वाले आप जैसे प्रबुद्ध से उम्मीद है कि आप अपनी पूरी नैतिक जिम्मेदारी के साथ इन मुद्दों को भी उठायेंगे। शायद आपको याद हो, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों को सजा देने में हमारी न्यायपालिका को नौ साल लग गये थे, ऐसे में आम आदमी की पीड़ा तथा न्याय पाने के लिए उसे किस चक्की में पिसना पड़ा है,संभवतः आप इससे अनजान हैं।
आपको तो दुःख है, नाराजगी है कि प्रधानमंत्री तथा न्यायाधीश क्यों नहीं आपके इस तथाकथित जन लोकपाल के अंकुश के नीचे आ रहे हैं।
अन्ना, अगर आपमें थोड़ी भी संजीदगी है तो आप उठ खड़े होइये। हमारे उन भ्रष्ट शिक्षकों,डॉक्टरों,पुलिस व्यवस्था,भ्रष्ट न्यायपालिका, जमाखोर व्यवसायियों के खिलाफ भी स्वर मुखर करें। जीवन से लेकर मरण तक भारत का हरेक नागरिक विभिन्न समस्याओं से जूझ रहा है। एक ओर संविधान में उन्हें बराबरी का हक है, दूसरी ओर आरक्षण,तुष्टीकरण, वोटों का समीकरण, जातिगत भेद-भाव की उतनी ही गंभीर समस्या है। संभवतः आपका चश्मा अभी धुंधला देखता है।
किसी बड़े वृक्ष की फुनगियों की छंटाई कर आप भ्रष्टाचार मुक्त देश-समाज की उम्मीद पाल रहे हैं तथा युवाओं को ऐसा ही स्वप्न दिखा रहे हैं लेकिन आपने तो समस्या का गिरेबां तक ही नहीं पकड़ा, या कड़े शब्दों में कहूं, तो आप लगता है, इन सबसे अनजान ही हैं।
शराबबंदी, भजन-कीर्तन, जल संरक्षण जैसे कतिपय सेवामूलक कार्यों के कारण समाज में निश्चित तौर पर आपकी बेहतर पहचान बनी है तथा आप इसके हकदार भी हैं, लेकिन यहां आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि महान बनने के लिए आपको महान जिम्मेदारियों का भार भी वहन करना पड़ेगा।
राजनीतिक भ्रष्टाचार की चर्चा तो आपने खूब की है लेकिन देश के निजी औद्योगिक घरानों द्वारा अपने कर्मचारियों पर किये जा रहे शोषण के संबंध में आपने अब तक चुप्पी क्यों साध रखी है। देश में लाखों किसान ऋणभार के कारण आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहे हैं, आपने कभी उनके प्रति चिंता व्यक्त की है। देश का आम नागरिक आज आपका साथ क्यों दे रहा है, जरा इस पर विचार करें, उसे आशा बंधी है कि एक अहम मुद्दे को आपने उठाया है,संभवतः इससे उनकी समस्याओं का निराकरण होगा,लेकिन यह बात हकीकत से अत्यंत दूर है। कारण कि जब तक घर के भीतर और बाहर, दोनों ओर सफाई नहीं होगी, तब तक गंदगी दूर नहीं की जा सकती है। किसी भी सरकारी महकमे को आप उठा लीजिये,ए राजा,सुरेश कलमाड़ी जैसों की तो बात दूर आम चपरासी, जो हमारे-आप के बीच के ही लोग हैं, चौराहे पर खड़ा कांस्टेबल, जो हमारे ही समाज का एक अंग है, बिना मुट्ठी गर्म हुए इंच भर भी नहीं सरकता है। आप मुर्दाघाट जाइये, वहां भी मुट्ठियां गर्म करनी पड़ेंगी। जीवन से लेकर मरण तक हर कार्य में आपको सुविधा शुल्क चुकाना ही पड़ेगा।
क्या जैसा कि आप सबों का दावा है, 101 नंबर पर डायल करते ही जन लोकपाल आयेगा तथा अलादीन के जिन्न की भांति
सारी समस्याएं और रग-रग में समाये भ्रष्टाचार को समाप्त कर देगा। अगर ऐसा है, तो आपका स्वागत है, अन्ना।
लेकिन पहले आप तो स्वयं के व्यवहार में पारदर्शिता बरतें। यह तो बताएं कि किस आधार पर जन लोकपाल में निगरानी हेतु लोकपाल नियुक्त किये जायेंगे।
कोई भी लड़ाई अगर सही तरीके से नहीं लड़ी गयी तो उसका सही निष्कर्ष कभी नहीं निकलता है। आपके इस आंदोलन का हश्र भी कहीं जेपी आंदोलन की भांति न हो, इस कारण एक बार ठहर कर इन सभी मुद्दों पर भी विचार करें। आज देश जब आपको मार्गदर्शक की भूमिका में देख रहा है, तब थोड़ा इन मसलों पर भी देश को अपने विचारों से अवगत कराने का कष्ट उठायें। यकीन मानिये, मेरे जैसे कुछ अल्पबुद्धि वालों को ये समस्याएं काफी पीड़ा पहुंचाती हैं, लेकिन सही हकीम के अभाव में अपनी दुखती रग को हम अपने एकांत में सहलाते रहते हैं, कारण कि फिलवक्त कोई रहनुमा सामने नहीं दिख रहा था।
अब जब आप मशाल थाम निकल पड़े हैं, तो जरा इन समस्याओं के निराकरण के संदर्भ में अपने विचारों से देशवासियों को प्रभावित कर भ्रष्टाचार रूपी दानव से समूल छुटकारा दिलाने की क्या आपके पास कोई कार्यसूची है,है तो उसे भी क्रमवार विश्लेषित कर देश के सामने रखें।
यकीन माने, यह समय की जरूरत है और आवश्यक भी है। शायद आप तक मेरे ये तुच्छ विचार और सवाल पहुंच पायें और आप इनके उत्तर देने की जहमत उठा सकें, तो यह देशवासियों के लिए कल्याणकारी ही साबित होगा।
इसी कामना के साथ....
कमलेश पांडेय