Sunday, August 2, 2009

मित्र

बड़े दिनों बाद
तुमसे मिलना हुआ मित्र।
ऍसा लगा
मानो
खुद से ही मैं मिला
सच -
कठिन हो गयी है अब
खुद से खुद की मुलाकात,
ऍसे में तुमसे मिलना
मानो
किसी फूल का खिलना
तपती दोपहरी में बदली की छांव का पसरना
किसी अबोध के चेहरे पर निश्छल मुस्कान का उभरना।
अकेला होना
बड़ा ही दुष्कर
मानो-
जलती रेत
न खत्म होने वाला सफर
स्याह रात
अनजान डगर।
तुम हो
साथ है
बात है
जीवन है।
मित्र तुम्हारा होना
जीवन का होना
तुम्हें खोना
सब कुछ खोना है।
-०-
कमलेश पांडेय

2 comments:

  1. बढ़िया पोस्ट लगाई है।

    दोस्ती का जज़्बा सलामत रहे।
    मित्रता दिवस पर शुभकामनाएँ।

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  2. बहुत सुन्दर रचना है कमलेश जी।बधाई।

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