( मित्रता दिवस पर विशेष)
मित्र
अंधेरे में साथी जब
सूझती नहीं है राह
भय से
लरजते कांपते हैं पैर
सामने घना अंधेरा
राह अदृश्य।
सामने कौन- कैसा
पहचानना
मुश्किल।
वाकई घना है
अंधेरा,
दिन के उजाले में
भी
पहचानना मुश्किल
कई बार
अपने तक को ?
चेहरे की लकीरें
ढंक लेती हैं
नहीं पहचानने देती हैं
सही चेहरे, सही रास्ते, सही लोग।
वाकई
चेहरों को पहचानना
काफी कठिन होता है
कारण
अक्सर
हम खुद से भी
कतराते हैं
ऍसे में
साथी
कह पाना मुश्किल होता है
क्या
हम आदमी हैं ?
प्रश्न अनुत्तरित -
आओ
उत्तर ढूंढे
मिलकर हम-तुम
-०-
कमलेश पांडेय
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