Wednesday, July 29, 2009

तुम चुप क्यों हो ?

तुम चुप क्यों हो -
लंबे अरसे से
सोचता हूं मैं
वजह क्या है
होठों के सिले होने की
कई बार
मैंने देखा है
आंख मूंद कर
निकल जाते हैं हम
अपने साथ के लोगों को
बेचैन छोड़
उनकी अपनी पीड़ा के साथ
हमें भी तो
अपने सलीब ढोने पड़ते हैं
कई- कई ईसा
अपने सच को
ताजिंदगी
ढोते रह जाते हैं।
लहूलुहान आत्मा
को नहीं मिलती कोई राहत।
सच है-
जीवन आज सलीब बन चुका
और
सिसिफस की भांति शापित
हम सब
दुःखों को परवान
चढ़ाते रहते हैं।
दुःख तेरा हो या मेरा
वाकई
शिला सम भारी होता।
अक्सर वह
हमारे आंसुओं
हमारे होंठों
पर
टंगा होता।
-०-
कमलेश पांडेय

2 comments:

  1. कमलेश जी सुन्दर भाव लिये कविता लिखी है आपने.. सचमुच कभी कभी अपनी खामोशी की वजह भी तलाशनी पडती है

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