Thursday, September 22, 2011

कितने कारगिल और (संक्षिप्त कहानी )

कितने कारगिल और
कमलेश पांडेय

अमरनाथ कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ाई के दौरान शहीद हो जाता है। राज्य सरकार तथा केंद्र सरकार की ओर से लाखों रुपये मुआवजा की घोषणा उन सरकारों के बीच होड़ स्वरूप की जाती है। अमरनाथ का शव ताबूत में भर कर सरकार गांव में भिजवाती है तथा सैनिक सलामी के बीच उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। दूर-दूर से लोग अंतिम यात्रा में भाग लेने जुटे हैं। उसकी पत्नी गौरी, मां, पिता, भाई, भाभी सब फूट-फूट कर रोते हैं। मंत्री सांत्वना देते हुए मुआवजा राशि की घोषणा करते हैं।
मुआवजा राशि को लेकर शहीद अमरनाथ के भाई-भाभी, मां-पिता रात को आपस में बहस करते हैं, जिसे गौरी सुन लेती है। उस मुआवजा राशि को हासिल करने के लिए उनमें आपस में ही काफी बहस होती है। पूरी बहस को सुनकर गौरी अवाक रह जाती है।
दूसरे दिन गौरी का भाई सुभाष आता है, जिसे गौरी सब बता देती है। वह उसे दिलासा देता है कि सावधान रहो तथा किसी भी हालत में दबना नहीं। और पैसे पर किसी का नाम नहीं चढ़ने देना।
यह सारी बातें गौरी की जेठानी सुन लेती है तथा वह अपने पति अमरनाथ को बताती है। अमरनाथ (गौरी के जेठ) उसे सावधानी बरतने तथा गौरी से नर्म व्यवहार बरतने को कहते हैं। सुभाष को बाहर निकलते देख उससे बड़े मीठे स्वर में अमरनाथ बात करते हैं तथा इशारे में कहते हैं कि सरकार अगर पैसा उनके नाम दे तो वे उसे ट्रैक्टर दिलाने में आर्थिक मदद करेंगे। लेकिन सुभाष बड़ी चालाकी से जवाब देता है कि वह अपनी बहन का पैसा नहीं लेगा।
इस बीच पेंशन के कागज आते हैं, जिनमें उत्तराधिकारी के रूप में गौरी का नाम लिखा था। अमरनाथ दबाव डालते हैं कि बैंक में खाता खोलकर पैसे भले ही गौरी जमा करवा ले लेकिन पैसों को निकालने का अधिकार वह अमरनाथ को सौंप दे। वे तर्क देते हैं कि औरत होकर तुम कहां बाहर-भीतर दौड़ोगी। गौरी अड़ गयी कि बैंक में उत्तराधिकारी के रूप में उसी के नाम का खाता खुलेगा।
थक-हार कर सब राजी हो जाते हैं। बैंक में खाता खुलवाने के बाद विजयी के तौर पर चहकते हुए गौरी घर आती है तथा मां को बताती है। मां ताना मारती है।
खैर, पैसे खाते में जमा होने लग गये। गौरी उन पैसों को नहीं निकालती थी। जब काफी पैसे जमा हो गये तब एक दिन अमरनाथ अपनी पत्नी के जरिये गौरी को बुलाते हैं तथा घर पक्का बनवाने के नाम पर पैसे मांगते हैं। गौरी पैसे देने से मना करती है। इस बात पर उनके बीच आपसे में झिक-झिक होती है। आपस में घरवाले सलाह करते हैं तथा वकील के पास जाते हैं।
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वकील सत्यप्रकाश सलाह देते हैं कि एक मुकदमा शुरू कर दिया जाये कि गौरी शहीद अमरनाथ के मरने से चार साल पहले ही अपनी इच्छा से घर छोड़कर चली गयी थी, इस कारण अमरनाथ के पेंशन पर उसका कोई हक नहीं है। लोक-लिहाज तथा पंचायत के अनुरोध के कारण अब तक हमने मुकदमा शुरू नहीं किया था, लेकिन वास्तविक उत्तराधिकारिणी नहीं होने के कारण कानूनन यह उचित नहीं है।
कोर्ट में मामला शुरू हो गया। मामला देखने के नाम पर सुभाष अपनी बहन से पैसे मांगता है।
कोर्ट में बहस शुरू होती है, जहां वकील एक ओर गौरी को अमरनाथ की पत्नी साबित करने की कोशिश करता है, वहीं विपक्षी वकील अपनी दलीलों से यह प्रमाणित करना चाहता है कि गौरी चार साल पहले उनमें आपसी रजामंदी से हुए तलाक के बाद घर छोड़कर चली गयी थी।
इसी बहसबाजी के बीच कोर्ट यह आदेश देती है कि पेंशन के उत्तराधिकारी के रूप में गौरी का नाम दर्ज रहेगा लेकिन विपक्षी वकील के दबाव के कारण जज आदेश देते हैं कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता है कि गौरी शहीद की वास्तविक उत्तराधिकारी थी, तब तक बैंक खातों से पैसों की निकासी पर रोक लगा दी जाये। और वे मुकदमे की सुनवाई के लिए अगली तारिख दे देते हैं।
इस प्रकार साल-दर-साल काफी बहसबाजी होती है। ऊलजलूल के सवाल-जवाब आपस में वकील करते हैं। इस बीच गौरी अपना ससुराल छोड़कर अपने मायके में रहने चली जाती है। अंत में उसे मनाने के लिए अमरनाथ उसके मायके जाते हैं तथा समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन गौरी नहीं मानती है तथा ससुराल आने से मना कर देती है।
रामनाथ अपने वकील से मिलते हैं तथा कोई रास्ता निकालने को कहते हैं। वकील कहते हैं कि अगर किसी कारण से गौरी की मौत हो जाये, तब शहीद अमरनाथ के सबसे नजदीकी रिश्तेदार होने के नाते उसके पेंशन तथा मुआवजे की राशि आप लोगों को मिल सकती है।
रामनाथ को मानो रास्ता सूझ गया। सुभाष के घर रात में डकैत धावा मारते हैं। लूटपाट से कहीं अधिक वे घरवालों की तलाश कर रहे थे। किसी प्रकार जान बचाकर गौरी, सुभाष वहां से भाग निकलते हैं। अगले दिन मुकदमे की तारीख थी। सुभाष की मोटरसाइकिल पर बैठकर गौरी गंवई रास्ते से होते हुए कोर्ट की ओर जा रहे हैं। इस बीच कई मोटरसाइकिल सवार उन दोनों को घेर लेते हैं। मार-पीट कर वे सुभाष तथा गौरी को गोली मार देते हैं।
रामनाथ वहां आते हैं तथा सुभाष और गौरी के थैले की जांच पड़ताल करते हैं। रोटियां वहीं फेंक देते हैं तथा मुकदमे के कागजात और चेक लेकर चले जाते हैं। रोटियों पर कौवे टूट पड़ते हैं।

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