देश में आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ मानो आंधी सी आ गयी है। पूरा देश गांधी टोपी पहन, मोमबत्ती जुलूस निकालकर देश को एक नये आलोक से जगमगा देना चाहता है। देश के विभिन्न भागों में रैलियां निकाली जा रही हैं। हमारे महानगर में भी युवकों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ रैलियां निकालीं, नारे लगाये- 'अण्णा तुम अनशन करो, हम तुम्हारे साथ हैं।Ó दरअसल देश के वे युवा, जिन्होंने सन् छिहत्तर की संपूर्ण क्रांति तथा उसका हश्र नहीं देखा, इन मशाल जुलूसों में आगे-आगे शामिल हुए। उनकी आंखों में फिलवक्त एक स्वप्न टंगा है, जन लोकपाल लागू होते ही उनकी सारी दुश्वारियां समाप्त हो जायेंगी। मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री और न्यायाधीश तक को इस जन लोकपाल के अधीन ला देने के कारण देश एक बार फिर सोने की चिडिय़ा बन जायेगा। कारण कि देश के तमाम भ्रष्टाचारियों पर जन लोकपाल के सदस्य निगरानी रखेंगे।
बहरहाल, लोकतंत्र में विभिन्न मुद्दों पर आंदोलन छेड़े जाने चाहिए, क्योंकि यह वक्त की जरूरत है। वाकई आज देश में भ्रष्टाचार अपने चरम स्वरूप में पसर चुका है। हर रिश्ते-नाते, समाज, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन सेवा, जिस किसी मसले को आप उठा लें, भ्रष्टाचारियों की जमात आपके इर्द गिर्द बिखरी मिलेगी। पानी मिला दूध भी सही मात्रा में घर में नहीं बंट पाने के कारण हमारे बंटते परिवारों से लेकर बाजार में रंग मिली सब्जियों को बेचने वालों, नकली दवाओं के साथ जाली नोटों को चलाने वालों को आप सबों ने लगता है कहीं नहीं देखा है। दरअसल, हम इसे भ्रष्टाचार नहीं मानते हैं। हमारे कुछ विद्वत्जन यह भ्रम फैलाना चाहते हैं कि जन लोकपाल के हाथों जादुई छड़ी होगी, कारण भ्रष्टाचार की गंगा ऊपर से नीचे बहती है। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री, न्यायाधीश तथा अफसरशाही के भ्रष्टाचार पर रोक लग जाने से वाकई देश में..राम-राज...जायेगा। खैर, इस आंदोलन में एक बात बढिय़ा है कि आंदोलनकारी 'गांधीगीरी.में विश्वास रख रहे हैं। सिर्फ गांधी टोपियां इन दिनों ब्लैक में मिलने लगी हैं (पहले आठ, अब बीस रुपये) और पूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी की जेब कथित ईमानदार आंदोलनकारी काटने पहुंच जा रहे हैं। यह तो बढिय़ा बात है कि मुन्ना भाई ने पहले ही देश के नौजवानों को गांधीगीरी की सीख दे दे थी। अन्यथा कहीं हमारे देश का हाल भी लीबिया में चल रहे आंदोलन जैसा हो जाता।
अब अण्णा जी का आंदोलन पूरे शबाब पर है तथा लगता है कि जन लोकपाल के मसले पर कुछ न कुछ ठोस नतीजा निकल जायेगा। देश की जनता के हाथों में वह कमान होगा, जिससे कि उसकी सारी समस्याओं का समाधान मिल सकेगा। सब्जियां सस्ती हो जायेंगी। बाप अपने बेटों के लिए दहेज नहीं लेंगे। बहुएं दहेज के लिए जलाई नहीं जायेंगी। बच्चों के स्कूलों में ऐडमिशन के लिए प्रिंसिपल डोनेशन मांगना छोड़ देंगे। सरकारी अस्पतालों में दवाएं मिलने लगेंगी। नर्सिंगहोम मरीजों को लूटना बंद कर देंगे। टीटीई ट्रेनों में बिना रिश्वत लिए आपको आरक्षण दे देंगे। ट्रेनें पलटना बंद कर देंगी। पुलिस बिना मुट्ठी गर्म हुए आपकी शिकायत लिख लेगी। न्यायालयों में न्यायाधीशों के सामने बैठे पेशकार उनके सामने ली जाने वाली पेशी (नकदी) की उगाही बंद कर देंगे। भ्रष्टाचार आज समाज में एकदम निचले तबके से लेकर ऊपर तक व्याप्त है। कई बार लगने लगता है- 'किस रावण की भुजा उखाड़ूं/ किस लंका में आग लगाऊं / गली गली, हर घर-घर रावण/ इतने राम कहां से लाऊं।Ó
अब आप देखिये न, किसी भ्रष्ट समाज में किसी बेचारे पुरुष तक को कितना भुगतना पड़ता है। पति बेचारा अगर औरत पर हाथ उठाता है तो वह जालिम, जो पिट जाता है तो बुजदिल। पत्नी को दफ्तर के किस्से नहीं बतलाये तो घुन्ना और बोले तो बेगैरत। घर से बाहर रहे तो आवारा, घर में पड़ा रहे तो नकारा। बच्चों को डांटे-पीटे तो जालिम और नहीं डांटे-पीटे तो लापरवाह। नौकरी नहीं करने दे तो- शक्की और करने दे तो औरत की कमाई खाने वाला।
क्या आप इस मसले को दांपत्य जीवन में छिपा भ्रष्टाचार नहीं मानते हैं। यह तो हम नासमझ थे और अब सन् छिहत्तर के बाद किसी ऐसे आंदोलन को अण्णा की कृपा से देख पा रहे हैं।
जोश मलीहाबादी के स्वर में कहें- 'अब तक खबर न थी मुझे उजड़े हुए घर की/ तुम आये तो घर बेसरो-सामां नजर आया।Ó
देश एक बार फिर उम्मीदों से भर उठा है। कृपया इसका गलत अर्थ नहीं लगायेंगे। हमारी किस्मत ही बहादुर शाह जफर की भांति है- 'उम्र ए दराज मांगकर लाये थे चार दिन / दो आरजू में कट गये, दो इन्तजार में।Ó
अब ऐसी स्थिति में जब सभी हताश बैठे थे तभी साहिर लुधियानवी के शब्दों में मानो समय ने स्वयं हमें दिलासा दिया है - 'तुम अपना रंजोगम अपनी परेशानी मुझे दे दो/ मुझे अपनी कसम, यह दु:ख, यह हैरानी मुझे दे दो/ मैं देखूं तो सही, यह दुनिया तुझे कैसे सताती है / कोई दिन के लिये तुम अपनी निगहबानी मुझे दे दो।Ó अब देखा, जाये, उम्मीद पर ही तो दुनिया टिकी है।
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