कमलेश पांडेय
Friday, April 2, 2010
अंधेरा
अंधेरा
कई बार
अपने मन से उपजता है
भयभीत होने के लिए
जरूरी नहीं
किसी अजाने से रूबरू होना
बस
अपने में सिकुड़ते जाना काफी है
कल
नयी सुबह होने तक
धड़कता रहेगा
हृदय
काली खोह के
किसी
अपरिचित कोने से।
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