बहुत दिनों बाद 
एक बार फिर कूकी कोयल
चुप बैठा काक भी कुछ बोला
टूटी मनहूस छायी चुप्पी
बोला 
कुछ तो बोला। 
पर तुम हो क्यों चुप
होंठ हैं क्यों सिले ?
आंखों से उतर खामोशी 
जिह्वा तक है क्यों फैली ?
चुप रहना 
न कुछ कहना 
भला, यह भी कोई बात हुई -
कहते हैं -
न कुछ बोलो 
तब भी 
बोलती हैं आंखें
खोलती हैं राज आंखें
पर पत्थर सी बेजान आंखें 
और 
कस कर सिले होंठ 
सच बताओ 
साथी 
तुम नये युग के इन्सान तो नहीं ?
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