Sunday, June 28, 2009

बहुत दिनों बाद

बहुत दिनों बाद
एक बार फिर कूकी कोयल
चुप बैठा काक भी कुछ बोला
टूटी मनहूस छायी चुप्पी
बोला
कुछ तो बोला।
पर तुम हो क्यों चुप
होंठ हैं क्यों सिले ?
आंखों से उतर खामोशी
जिह्वा तक है क्यों फैली ?
चुप रहना
न कुछ कहना
भला, यह भी कोई बात हुई -
कहते हैं -
न कुछ बोलो
तब भी
बोलती हैं आंखें
खोलती हैं राज आंखें
पर पत्थर सी बेजान आंखें
और
कस कर सिले होंठ
सच बताओ
साथी
तुम नये युग के इन्सान तो नहीं ?

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