Wednesday, November 30, 2011

औरत का होना सहज नहीं होता


सहज नहीं होता
औरत होना
गर्भ में थामे रखनी पड़ती है
पूरी पृथ्वी
हम हैं
जीवन है
दुःख-सुख
खुशियां- आंसू हैं
जीवन के लिए
औरत की कोख
चाहिए होती है
दुःख भुलाने को
प्रेमिका की आंखों का
एक कोना
आसान नहीं होता
औरत का होना
पूरी कायनात समेटे रहती है
अपने आंचल में वह
घर-परिवार
हम-तुम

सभी सिमटे
उसकी बांहों में
जहां बरसता है
सिर्फ स्नेह
आसान नहीं होता
किसी के प्रेम में मिले
आनंद को भुला देना
औरत होना
मानो धरती होना है।
- कमलेश पांडेय

Saturday, November 19, 2011

ओ एक कतरा सुख!


ओ एक कतरा सुख!
तुम्हारे लिए
आजन्म प्रतीक्षा की है
कई-कई
बार
झांके हैं
मैंने
तुम्हारी आंखों के कोने।
तलाशें है
शब्दों के भी मर्म।
अपरिचित होठों पर फूटती हंसी
खुशी से छलकती आंखों में हैं दिखीं
कई बार तुम्हारी झलकियां।
ओ एक कतरा सुख!
कई बार तुम
लडख़ड़ाते बच्चे की भांति
बगल से गुजर गये
थलमलाते
बढ़ाई थीं उंगलियां मैंने
तुम्हें थाम सीने में सजोने को
पर
तुमने तो
मुंह ही मोड़ लिया
तुम्हें भी तो चाहिए
संगी कोई ऐसा
जो
तुम सा ही होता।
काश!
भूल पाता मैं
बोझिल होते जा रहे शब्द
भोगी/ ओढ़ी तमाम अनुभूतियां
और
चल पड़ता
तलमल-थलमल
तुम्हारी उंगली थाम।
- कमलेश पांडेय
18-11-11, (बक्सर स्टेशन, शाम 7.30 बजे)