बहुधा
एक ही सच के उत्तर की तलाश
रहती है हमें
पर नहीं
अक्सर हम अपने
सवालों को ही नहीं जानते
ठीक वैसे- जैले
अनजाने-अपरिचित रहते हैं
अपने ही चेहरे।
प्रश्न अपना संदर्भ ही खो देते हैं
अथवा
स्वयं हम उत्तर देना नहीं चाहते
अनुत्तरित रह जाता है
सदा से ही
यक्ष प्रश्न।
विखंडित स्वरूप की पहचान
करती है सदा विचलित
और रह जाता है
सदा ही अनुत्तरित
सवालों में झांकता
अपना ही चेहरा।
सवाल और चेहरे
सदा से भयद्रावक/अविश्लेषित
उंगलियों और प्रश्नों का
अपनी ओर उठना खतरनाक
रह जाता है
बहुधा
सच
इसीलिए
अनुद्घाटित।
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