Friday, April 2, 2010

गलती क्या

गलती क्या, जो हम पर यह सितम हुआ
कहा तुमने, जो कुछ हुआ पर कम हुआ
अब दें हम किस किस को वफा का इम्तहान
कान बंद रखा जमाने ने, इसी का गम हुआ
कल तक था जो लफ्ते जिगर
बदल मुखौटा अपना कातिल ए हमदम हुआ
हवा चली ऍसी, उठते जो दुआ-सलाम में हाथ
उनमें खूं से तर त्रिशूल औ खंजर हुआ
कल बिखरा था सड़क पर दुधमुंहे भारत का लहू
देखा जो मंजर यह दिल पुरनम हुआ
अब किस भगवान- अल्लाह को ढूंढने जाते हो अहमक
बदलते दौर में आदमी फिर नंगा आदम हुआ।

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